17 दलों को नींद से जगाया ECI ने! बोले: “या चुनाव लड़ो या बाहर हो जाओ

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने 17 ऐसे राजनीतिक दलों को झटका दे मारा है जो 2019 से गुप्त ध्यान-साधना में लीन थे। चुनाव नहीं लड़ा, जनता से संवाद नहीं किया, पर सरकारी फायदे बड़े प्यार से लेते रहे।
ECI ने कहा – “इतने भी इनएक्टिव मत बनो, ट्विटर अकाउंट से भी ज्यादा साइलेंट हो!”

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“कृपया जागें और जवाब दें” – ECI का लव लेटर 26 जून को जारी

ECI ने 26 जून 2025 को पत्र (संख्या 56/2025/PPS-III) में शायद इसी तरह साफ शब्दों में पूछा – “राजनीति कर रहे हो या अपने घर की दीवार पर सिर्फ पार्टी का बैनर टांगा है?”
अब 15 जुलाई तक इन दलों को साबित करना है कि वो सिर्फ नाम के लिए नहीं, काम के लिए भी पंजीकृत हैं।

जिन पार्टियों ने ‘राजनीति’ को लंबी छुट्टी पर भेजा

इन 17 दलों में कुछ नाम ऐसे हैं जो शायद ही कभी आपने किसी मतपत्र पर देखे हों, लेकिन सरकारी लिस्ट में पूरी तरह से ‘हाजिर’ हैं –

  • भारतीय बैकवर्ड पार्टी

    भारतीय सुराज दल

    भारतीय युवा पार्टी (डेमोक्रेटिक)

    भारतीय जनतंत्र सनातन दल

    बिहार जनता पार्टी

    देशी किसान पार्टी

    गांधी प्रकाश पार्टी

    हमदर्दी जनरक्षक समाजवादी विकास पार्टी (जनसेवक)

    क्रांतिकारी साम्यवादी पार्टी

    क्रांतिकारी विकास दल

    लोक आवाज दल

    लोकतांत्रिक समता दल

    राष्ट्रीय जनता पार्टी (भारतीय)

    राष्ट्रवादी जन कांग्रेस

    राष्ट्रीय सर्वोदय पार्टी

    सर्वजन कल्याण लोकतांत्रिक पार्टी

    व्यवसाई किसान अल्पसंख्यक मोर्चा

15 जुलाई – “जवाब दो या बाय-बाय!”

चुनाव आयोग ने निर्देश दिया है कि ये दल 15 जुलाई तक अपने सक्रिय होने का सबूत दें, वरना “डीलिस्ट” कर दिए जाएंगे।
जवाब भेजना है ईमेल से – हां, अब आयोग भी डिजिटल इंडिया मोड में है:
ceo_bihar@eci.gov.in

‘डीलिस्ट’ मतलब – न पार्टी बचेगी, न पहचान

अगर जवाब नहीं आया तो इनका रजिस्ट्रेशन रद्द हो जाएगा।
मतलब:

  • चुनाव चिह्न जाएगा

  • टैक्स छूट खत्म

  • प्रचार का हक छिन जाएगा

  • और नाम के आगे से “पार्टी” भी हट जाएगा

ECI बोले – “सिर्फ नाम से कोई लोकतंत्र नहीं चलता!”

“ये जरूरी क्यों था?” – सवाल से पहले जवाब तैयार

राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा –
“देश में ऐसे दल अब पनप रहे हैं जैसे पुराने ईमेल अकाउंट – पासवर्ड भी नहीं पता, लेकिन बंद भी नहीं करते!”
यह कदम जवाबदेही बढ़ाने की दिशा में अहम है ताकि लोकतंत्र सिर्फ दिखावे का न रह जाए।

“नाम पार्टी का, काम नींद का!”

कुछ दलों की हालत ऐसी है जैसे वो “राजनीतिक हाइबरनेशन” में हों।
मतदाता भी सोचते होंगे –
“पिछली बार तो इन्होंने पोस्टर भी नहीं लगाया था, अब नाम कहां से आया?”

ECI ने तो जैसे अब कह ही दिया –
“आप पार्टी हो या प्रॉपर्टी, अगर इस्तेमाल नहीं हो रहे तो बेच दिए जाओगे!”

ये कदम न केवल निष्क्रिय दलों की सफाई है, बल्कि एक सशक्त लोकतंत्र की दिशा में बड़ा सुधार भी है। अब देखना ये होगा कि कौन सा दल नींद से जागकर जवाब देता है, और कौन हमेशा के लिए चुनावी इतिहास में ‘गुमनाम’ रह जाता है।

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